Yes,And The First Train Which Ran Into NER Zone Was Between Vajitpur And Darbhanga!
Darbhanga Used To Be The Major Rail Head Of Tirhut Railways When The Collaboration Of Tirhut & Assam Railways Took Place! :)
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पूर्वोत्तर रेलवे में वाजितपुर-दरभंगा के बीच चली थी पहली ट्रेन
Sun...
more... Apr 17 01:18:28 IST 2016
जागरण संवाददाता, गोरखपुर : देश में 16 अप्रैल 1853 को बोरीबंदर और थाणे के बीच पहली ट्रेन चली थी। ठीक 21 वर्ष बाद पूर्वी उत्तर प्रदेश और उत्तर बिहार में पूर्वोत्तर रेलवे का उद्भव हुआ। 15 अप्रैल 1874 को वाजितपुर और दरभंगा के बीच पहली ट्रेन चली थी। तब, रेलगाड़ी राहत सामग्री ढोने के लिए चलाई गई थी। आज इस रेलवे में इलेक्ट्रिक और डेमू गाड़ियां चलने लगी हैं। जो उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तराखंड की आम जनता की विश्वसनीय परिवहन सुविधा बन गई हैं।
1874 में पूर्वी उत्तर प्रदेश और उत्तर बिहार में भीषण अकाल पड़ा था। ऐसे में निर्धारित समय में लोगों तक राहत सामग्री पहुंचाना मुश्किल था। खाद्यान्न और पशु चारा पहुंचाने के लिए वाजितपुर और दरभंगा के बीच 51 किमी रेल लाइन का निर्माण मात्र 60 दिन में किया गया। इसी रेल लाइन पर पहली बार रेलगाड़ी राहत सामग्री लेकर दरभंगा तक गई थी। इसके बाद यह रेल लाइन इस अविकसित क्षेत्र में परिवहन का प्रमुख माध्यम बन गई। जुलाई 1890 तक रेललाइन का विस्तार 491 किमी तक हो गया। इस रेल लाइन का नाम तिरहुत रेलवे पड़ गया।
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1906 में पड़ी पूर्वी उत्तर
प्रदेश में रेलवे की नींव
1906 में कासगंज से काठगोदाम तक का रेलखंड यातायात के लिए शुरू कर दिया गया। भोजीपुरा से बरेली खंड का निर्माण हो जाने से लखनऊ से काठगोदाम तक रेल लाइन का कार्य पूरा हुआ। इस दौरान कटरा-अयोध्या, बहराइच, नेपालगंज रोड, सोनपुर- छपरा-सीवान-गोरखपुर-मनकापुर खंड का निर्माण पूरा हुआ। इसके साथ ही पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी रेल की नींव पड़ गई।
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1943 में पड़ी अवध-
तिरहुत रेलवे की नींव
एक जनवरी 1943 से इस रेलवे का नाम अवध-तिरहुत पड़ गया। इसी में बंगाल, नाथ वेस्टर्न रेलवे, रोहिखंड व कुमायू रेलवे भी शामिल था। 1947 में ईस्टर्न बंगाल रेलवे तथा बंगाल असम रेलवे के मुरलीगंज-पूर्णिया तथा बनमंखी-बिहारीगंज रेल खंड को भी अवध-तिरहुत रेलवे में शामिल कर लिया गया।
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1952 में अवध-तिरहुत से
अलग हुआ पूर्वोत्तर रेलवे
14 अप्रैल 1952 को दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू ने अवध-तिरहुत रेलवे, असम रेलवे, बांबे बड़ौदा तथा सेंट्रल इंडिया रेलवे के फतेहगढ़ जिले को मिलाकर पूर्वोत्तर रेलवे का उद्घाटन किया था। 15 जनवरी 1958 में पूर्वोत्तर रेलवे भी दो भाग में बंट गई। पूवोत्तर रेलवे सीमांत रेलवे अलग अस्तित्व में आई। 1 अक्टूबर 2002 से पूर्व मध्य अस्तित्व में आई। बाद में पूर्वोत्तर रेलवे के दो मंडल सोनपुर और समस्तीपुर को पूर्व मध्य रेलवे में मिला दिया गया।
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आज तक नहीं बन
पाया गोरखपुर मंडल
पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय गोरखपुर है। लेकिन, आज तक यह मंडल नहीं बन पाया। आज भी लखनऊ, वाराणसी और इज्जतनगर कुल 3 मंडल हैं। इस रेलवे का रूट 3767.55 किमी है। लगभग 2800 किमी बड़ लाइन और 1 हजार किमी छोटी लाइन हैं। इस रेलवे में कुल 492 स्टेशन स्थापित हैं।
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लार्ड लारेंस इंजन ने
खींची थी पहली ट्रेन
पूर्वोत्तर रेलवे में सबसे पहले चलने वाले इंजन का नाम 'लार्ड लारेंस' है। 1874 में यह इंजन लंदन से समुद्र के जरिए बड़ी नाव पर रखकर कोलकाता तक लाया गया था। इसी इंजन से पहली बार दरभंगा तक राहत सामग्री पहुंचाई गई थी। यह इंजन आज भी रेल म्यूजियम में सुरक्षित रूप से रखा गया है। जो लोगों को आकर्षण का केंद्र है।
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