जिन्दगी रेल के सफ़र जैसी ही तो है
हर रोज नए नए यात्री नया सफ़र नया जोश और फिर अनजाना सा लगाव और फिर मजिल पर पहुच कर फिर से एक नया सफ़र किसी से बिछड़ने के गम और मिलने की ख़ुशी के साथ नई शुरुवात ......
और जिन्दगी मिलने - बिछुड़ने की दो पटरियों के बीच दौड़ती भागती ही रह जाती है ....